भजन आत्मधुन
सुन, सुन, सुन, अरे भाई सुन, निज की धुन में पाप न पुण्य ।
लाख सुखों की एक दवा है, क्यों न अजमाये, काहे भरमाये,
काहे इत्तराये ।
सुन, सुन, सुन, अरे भाई सुन, निज आत्म में बड़े बड़े गुन ।
मेरी रुई में चार बिनोले, क्रोध, मान, माया, मद लोभे ।
पहले इनको चुन, चुन, चुन, अरे भाई चुन चुन चुन ।। निज…।।१
बाहिर से अब मन को मोड़ो, राग द्वेष मद की जड़ खोदो ।
निज को निज में गुन, गुन गुन, अरे भाई गुन गुन गुन ।।निज…।।२
आप ही कर्त्ता आप ही क्रिया आप ही ताना आप ही बाना ।
आप ही अपना बुन, बुन, बुन, अरे भाई बुन, बुन, बुन ।।निज…।।३
आप ही ध्याता आप ही ध्येया, आप ही पंकज, आप ही भौंरा ।
आप ही अपना भुन, भुन, भुन, अरे भाई भुन, भुन, भुन ।।निज…।।४
सहज स्वभावी निर्मल ब्रह्मा, जो ध्यावे सो होवे ब्रह्मा ।
लख के मन से धुन, धुन, धुन, अरे भाई धुन, धुन, धुन ।। निज…।।५
घट ही में मेरे है मन्दिर, घट ही में भगवान विराजे ।
भव्य भजो अब पुन, पुन, पुन, अरे भाई पुन, पुन, पुन।।निज…।।६
सहज स्वभावी चिन्मय मूरति, अगणित गुण से है परिपूर्ण ।
लख ले मल हो छुन, छुन, छुन, अरे भाई छुन छुन छुन ॥ निज…।।७
~अज्ञात