सुख के आवासों की मैंने सुनी अनेकों ही चर्चाएं
सुख की अभिलाषा से मैंने की लाखों पूजा-अर्चायें।।
मुझे इष्ट था सुख; मैं दौड़ा सुरपति के भवनों की ओर
क्योंकि सुना करता था सुख की नहीं वहां सीमा या छोर।
बढ़ा स्वर्ग की ओर, मार्ग में मिले गगन के चांद-सितारे
नभ-मण्डल के दीप सहस्त्रों चमचम-चमचम करते तारे।।
मैंने नहीं सुनी कुछ उनकी, मैं पहुंचा सुरपति के द्वार
जिनमें झनझन-झनझन करते लगे हुए सोने के तार।
रत्न विनिर्मित भूमि वहां की, थे रमणीक भव्य प्रासाद
नहीं दीख पड़ता था कोई दुःख का साधन या अवसाद।।
मेरे स्वागत को तब आई विद्युत-सी चंचल सुरबाला
उनमें घुलकर-मिलकर मैंने पान किया अमृत का प्याला।
मुग्ध हुआ मैं सुनकर उनकी रुनझुन-रुनझुन करती पायल
पूर्व जन्म की त्याग तपस्या हुई अरे! उस छलि से घायल।।
मैं उतरा उनके जीवन में, वे मेरे जीवन में आई
मेरे ज्ञान-चक्षु के आगे अब पूरी अंधियारी छाई।
सुरबाला के स्मित अधरों अब मुझको जीवन मिलता था
मेरा मुझ पर स्वत्व नहीं था, मैं तो सब कुछ ही मका था।
वे सुरम्य वन-उपवन वासी सर के शीतल-तट एकान्त
हरी दूब के खेत मनोहर और सुमन की सौरभ शान्त।
श्वेत-शिखर पर्वत श्रृंगों के अब थे मेरे क्रीड़ागार
हंस कोकिला के स्वर में अब, मैं स्वर भरता था सुकुमार।।
सोचा इससे बढ़कर भी क्या सुख की पराकाष्ठा हो क्यों
किन्तु मलिन कोने में बैठ रुदन कर रहा देव कहो क्यों।
रे! अमृत में भी मिलती क्या जहर हलाहल की यह रेखा
अरे! स्वर्ग के सुख सदनों में रोने का क्या काम अनोखा।।
पूछा, “भाई! क्यों रोते हो, क्या सुरपति की हुई ताड़ना
बोलो तो किस रिपु ने तेरी भंग की यह सुख-साधना?
तेरी रक्षा हेतु बन्धु मैं यह भीषण को दण्ड धरूंगा
तेरी रक्षा हेतु बन्धु मैं वज्रों के भी खण्ड करूंगा।।
मेरा वक्षस्थल फटता यह देख तुम्हारा करुण विलाप
रोते ही जाते हो देखो कुछ तो करो बन्धु संलाप"।
‘नहीं ताड़ना हुई किसी की’, बोला वह सुर करुणाकांत
'नहीं साधना भंग हुई, वह बोला क्षण भर होकर शान्त।।
"अरे! स्वर्ग का नियम यही है, यही स्वर्ग का महा-विधान
हँसता-हँसता आता, रोते-रोते होता है अवसान।
यों सुर से मानव अच्छा है, जब होता बालक का जन्म
रोता जग की दशा देखकर, लघु से शिशु का लघु सा मन।।
किन्त अरे! हँसता जाता है, ज्यों-ज्यों मृत्यु बुलावा देती
आगे बढ़ता ही जाता है, ज्यों-ज्यों मृत्यु भुलावा देती।
और अन्त में हँसता-हँसता तज देता मिट्टी के प्राण
नर से नारायण बन जाता, मानव से बनता भगवान"।
Artist: श्री बाबू जुगलकिशोर जैन ‘युगल’ जी
Source: Chaitanya Vatika