What are सिद्धांतिक ग्रंथ which should not be read on specific times like Ashtami, Chaturdashi, night, etc ?
Nyaya shastra like Pareeksha mukh, Alap paddhati, Nyaya deepika, Syadwad manjari can be read at night or not ?
What are सिद्धांतिक ग्रंथ which should not be read on specific times like Ashtami, Chaturdashi, night, etc ?
Nyaya shastra like Pareeksha mukh, Alap paddhati, Nyaya deepika, Syadwad manjari can be read at night or not ?
षट्खण्डागम और उसकी टीका धवला आदि सिध्दान्तिक ग्रन्थ माने जाते हैं।
सम्यग्ज्ञान के आठ अंग मे जो ज्ञानाचार आता वहाँ पर सन्धिकाल और उल्कापात आदि के समय सिध्दान्तिक गन्थो के अध्ययन निषेध किया है,परन्तु अष्टमी-चतुर्दशी के निषेध नहीं आया।
●सन्धि मे जो सिध्दान्तिक गन्थो के अध्ययन का निषेध किया उसका कारण यह है कि वो समय सामायिक का है,और इनके अध्ययन से सामायिक श्रेष्ठ है।
●उल्कापात आदि के समय इनके निषेध का कारण यह है कि इस समये इनके अध्ययन मे मन नहीं लगता क्योकि इनके अध्ययन के लिए उपयोग चाहिए,परन्तु उल्कापात आदि के समय वैराग्य पाठ आदि अध्ययन कर सकते हैं।
I think that Tatvarth Sutra, Dravya Sangrah is also a सिद्धांत ग्रंथ . Please correct me if I am wrong.
परंतु सिद्धांत ग्रन्थ अष्टमी व चतुर्दशी को नही पढ़े जाते हैं, जहां तक मैंने देखा है, हालांकि इसका कारण नही आया है कहीं।
(आने वाला सम्पूर्ण वर्णन मूलाचार जी ग्रंथ से लिया गया है )
सर्वप्रथम, गाथा 271-275 में कौन-कौन से काल स्वाध्याय के लिए अकाल हैं, उनका वर्णन किया गया है। वहाँ पर से उनका स्वाध्याय करना चाहिए जिससे विषय में और निर्मलता आये। चूंकि यहाँ प्रश्न काल संबंधी नहीं है इसलिए उसको यहाँ नहीं ले रहे हैं।
आगे, गाथा 277-278 में वर्णन आया कि सिद्धान्त/सूत्र ग्रंथों का स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। उसके कारण कुछ मुझे भी अस्पष्ट हैं, लेकिन उनको आगामी चर्चा का विषय बना सकते हैं। गाथा 277-278 का वो अंश ये रहा ―
उसके बाद आपके इस प्रश्न का समाधान भी गाथा 279 से हो जाता है जिसका अंश कुछ इसप्रकार है ―
स्वाध्याय काल व अस्वाध्याय काल का विभाजन अच्छे से समझ लेने के बाद ही इस विषय को पढ़ें। (Refer गाथा 271-275)
गाथा 279 भावार्थ में कौन से ग्रंथ पठनीय हैं, व कौनसे नहीं ― इसका थोड़ा और खुलासा किया गया है ―
यहाँ लिखे अनुसार मात्र षट्खंडागम, धवला, जयधवला आदि सूत्र ग्रंथ को ही पढ़ने का अस्वाध्याय काल में मना है। बाकि सारे ग्रंथ अस्वाध्याय काल में पढ़े जा सकते हैं।
इसके बावजूद अपनी बुद्धि से हमे खुद ये समझना चाहिए कि यदि किसी घटना/व्यक्ति/condition के वजह से हमारा स्वाध्याय में ध्यान नहीं लग पा रहा है तो जिनवाणी के अविनय से बचने का सम्पूर्ण प्रयास करना चाहिए। जिनवाणी की अवहेलना का महा-पाप है।
मूलाचार ग्रंथ का पूर्वार्ध यहाँ से प्राप्त हो सकता है ―
मूलाचार जी : पूर्वार्ध
Also time/day restrictions are for muni, not for sharvak
¹ पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, श्लोक 36
अकाल समय में स्वाध्याय क्या आगम अनुकूल हैं या नहीं स्पष्ट किजिये l
(यह प्रश्न निम्न सूचना पर आधारित है
पुत्र- पिताजी!आज मैंने मुनिराज के मुख से उपदेश में सुना है कि जो अकाल में अध्ययन करते हैं,वे ज्ञानावरण के क्षयोपशम के बजाए उसका बन्ध कर लेते हैं | तो क्या ऐसा भी हो सकता है कि धार्मिक ग्रन्थों का पठन-पाठन और स्वाध्याय ज्ञान को घटाने में कारण बन जाय ?
पिताजी- हाँ बेटा! हो सकता है | सुनो,मैं तुम्हेँ एक एेतिहासिक घटना सुनाता हूँ | एक शिवनन्दी नाम के मुनिराज थे | गुरु ने उन्हें बतलाया था कि रात्रि में श्रवण-नक्षत्र का उदय हो जाने पर स्वाध्याय का समय होता है,उसके पहले अकाल है | उन्हें ऐसा मालूम होते हुए भी वे अपने तीव्र ज्ञानावरणकर्म के उदय से उस गुरु-आज्ञा की अवहेलना करके आकर में स्वाध्याय किया करते थे | फलस्वरूप अंत में असमाधि से मरण करके पाप कर्म के निमित्त से गंगा नदी में महामत्स्य हो गये |आचार्यो ने ठीक ही कहा है कि-
“जिनाज्ञालोपनेनैव प्राणी दुर्गतिभाग्भवेत् |”
जिनेन्द्र देव की आज्ञा का लोप करने पर यह प्राणी दुर्गति में चला जाता है | पुनः उस नदी के तट पर स्थित एक महामुनि उच्च स्वर से स्वाध्याय कर रहे थे | इस मत्स्य ने उस पाठ को सुना तो इससे जातिस्मरण हो गया-“ओहो! में भी इन्ही के सदृश ही मुनिवेश में ऐसे ही स्वाध्याय करता रहता था पुनः मैं इस तिर्यन्चयोनि में कैसे आ गया? हाय!हाय! मैं जिनागम की और गुरु की आज्ञा को कुछ न गिनकर अकाल में भी स्वाध्याय करता रहा,जिसके फलस्वरूप मुझे यह निकृष्ट योनी मिली है | सच में आगम के पढ़ने का फल तो यही है कि उसके अनुरूप प्रवृत्ति करना | अब मैं क्या करूँ?” कुछ क्षण सोचकर वह मत्स्य किनारे पर आकर गुरु के समुख पड़ गया | गुरु ने उसे भव्य जीव समझकर सम्यक्त्व ग्रहण कराए तथा पंच अणुव्रत दिए | उस मत्स्य ने भी सम्यक्त्व के साथ-साथ अणुव्रतों को पालते हुए जिनेन्द्र भगवान के चरणकमलों को अपने हृदय में धारण किया और आयु पूर्ण करके मरकर स्वर्ग में महद्धि॔क देव हो गया |
पुत्र- पिताजी ! यह घटना तो रोमांच उत्पन्न कर देती है | वे महामुनि ज्ञान की वृद्धि के लिए ही तो काल-अकाल का लक्ष्य न देखकर स्वाध्याय कर रहे थे,फिर भी देखो,वे तिर्यंच योनी में चले गए | सचमुच में आगम की और गुरु की आज्ञा पालन करना ही सम्यक्त्व है | पिताजी! तो जो लोग आजकल आगम और गुरु की आज्ञा को कुछ ना समझकर मनमानी प्रवृत्ति से धर्म क्रियायें करते हैं या स्वेच्छा प्रवृत्ति से विधि-विधान करते हैं सो वह भी अशुभ फल का कारण हो सकता है क्या ?
पिताजी– हाँ बेटा ! कदाचित् वह अल्पफल देगा और कदाचित् जिनागम की अवहेलना के निमित्त से वह अशुभ फल भी दे सकता है |उपर्युक्त उदाहरण के देखने से इसमें संशय ही क्या है?
पुत्र- पिताजी! स्वध्याय के लिये काल और अकाल कब-कब होते हैं ?
पिताजी- प्रात:, सायं, मध्याह्न और अर्धरात्रि के मध्य के डेढ़-डेढ़ घण्टे का समय अकाल है। ऐसे ही दिग्दाह, उल्कापात, दुर्दिन, संक्रांति का दिन आदि भी अकाल है। इनसे अतिरिक्त काल सुकाल है। यह व्यवस्था सिद्धान्त ग्रंथादिकों के लिये बताई गई है किन्तु आराधना ग्रन्थ, कथा ग्रन्थ या स्तुति ग्रन्थों को अकाल में पढ़ने का निषेध नहीं है। इस काल और अकाल का विशेष वर्णन मूलाचार, अनगारधर्मामृत एवं धवला की नवमी पुस्तक से देख लेना चाहिये।
पुत्र - ठीक है, अब मैं सभी ग्रन्थों का यथासमय स्वाध्याय करके आगम के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा रखूँगा।)
यह समय कौन-कौन से हैं (with exact time slot)?