शुद्धातम सुखकार हो, शुद्धातम अविकार हो।
परभावों के पार हो, केवल जाननहार हो।। टेक।।
तीन भुवन में सार हो, अनुपम गुण भंडार हो।
अक्षय सुख भंडार हो, प्रभुता अपरम्पार हो।। ॥।
नहीं मोक्ष-संसार हो, नहीं विकल्प लगार हो।
गुणभेदों के पार हो, नय पक्षों के पार हो।। 2।।
ज्ञान रूप अविकार हो, ध्रुव स्वरूप सुखकार हो।
महिमा सहज अपार हो, ध्यावो मंगलकार हो।। 3।।
तजो मोह दुखकार हो, पर प्रपंच निस्सार हो।
भजो समय का सार हो, साँचा तारणहार हो।। 4।।
Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: स्वरूप-स्मरण