चारों गतियों में कौन भ्रमण करता है?
हमारा शरीर या हम आत्मा?
शरीर तो यहीं रह जाता है, उसे जला दिया जाता है। आत्मा ही चारों गतियों में घूम रहा है। हर गति में एक नया शरीर प्राप्त होता है। जैसे हम कपड़े बदलते हैं, उस प्रकार आत्मा शरीर बदलकर दूसरी गति में जाती है।
जब आत्मा सिद्धदशा प्राप्त करती है तब वो फिर कोई शरीर धारण नहीं करती।
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