गिरनार जी के कुछ आगम प्रमाण। Some Written Evidences About Girnar Ji

अरिष्ट-संकर्तन-चक्र-नेमिता- मुपागतो भव्य-जनेषु यो जिन: ।
अरिष्टनेमिर्जगतीतिविश्रुत:, स ऊर्जयन्ते जयतादित: शिवम् ॥22॥

अर्थ- संसार में अरिष्टनेमि नाम से प्रसिद्ध जो भगवान, भव्य जनों के अशुभ कर्मों के नाश करने में चक्र की धार के समान हैं तथा जो गिरनार पर्वत से मोक्ष को पधारे हैं - वे श्री अरिष्टनेमि भगवान, इस लोक में सदा जयवन्त रहें ।

आचार्य श्री पद्मनंदी कृत पद्मनंदी पंचविंशतिका
(समय काल ई.११ का उत्तरार्ध)
*

एदस्स उदाहरणं पावाणगरुज्जयंतचंपादी।
आउट्ठहत्थपहुदी पणुवीसब्भहियपणसयधणूणि।22।

अर्थ: इस क्षेत्रमंगल के उदाहरण पावानगर, ऊर्जयंत (गिरनार पर्वत) और चंपापुर आदि हैं…

ग्रंथ: तिलोए पण्णत्ति( त्रैलोक्य प्रज्ञप्ति )
रचयिता: आचार्य श्री यतिवृषभ ( 143-173 ई.)

ततोर्जयन्तमन्तेऽसावन्त कल्याणभूतिभाक् ।
आरुरोह स्वभावेन नृसुरासुरसेवितः ॥४॥

अर्थ: तदनन्तर जब अन्तिम समय आया तब निर्वाणकल्याणक की विभूति को प्राप्त होने वाले नेमि जिनेन्द्र मनुष्य, सुर और असुरों से सेवित होते हुए अपने-आप गिरनार पर्वत पर आरूढ़ हो गये ।।४।।

आचार्य श्री जिनसेन कृत हरिवंश पुराण सर्ग 65
(समय: 783 ईसवी)

ऊर्जयन्तगिरौ वज्री वज्रेणालिख्य पाविनीम् ।
लोके सिद्धिशिलां चक्रे जिनलक्षणपंक्तिभिः ॥ १४॥

अर्थ: गिरनार पर्वत पर इन्द्र ने वज्र से उकेरकर इस लोक में पवित्र सिद्धशिला का निर्माण किया तथा उसे जिनेन्द्र भगवान् के लक्षणों के समूह से युक्त किया || १४ ||

दशार्हादयो मुनयः षट्सहोदरसंयुताः।
सिद्धिं प्राप्तास्तथान्येऽपि शम्बप्रद्युम्नपूर्वकाः ॥ १६॥
ऊर्जयन्तादिनिर्वाणस्थानानि भुवने ततः ।
तीर्थयात्रागताने कभव्यसेव्यानि रेजिरे ॥ १७ ॥

अर्थ: समुद्रविजय आदि नौ भाई, देवकी के युगलिया छह पुत्र तथा शंब और प्रद्युम्नकुमार आदि अन्य मुनि भी गिरनार पर्वत से मोक्ष को प्राप्त हुए। इसलिए उस समय से गिरनार आदि निर्वाण स्थान संसार में विख्यात हुए और तीर्थयात्रा के लिए आने वाले अनेक भव्य जीवों के द्वारा सेवित होते हुए सुशोभित होने लगे ।।१६-१७॥

आचार्य श्री जिनसेन कृत हरिवंश पुराण सर्ग 65
(समय: 783 ईसवी)

अट्ठावयम्मि उसहो चंपाए वासुपुज्जजिणणाहो ।
उज्जंते णेमिजिणो पावाए णिव्वुदो महावीरो ॥ १ ॥

अर्थ: अष्टापद (कैलास पर्वत) पर ऋषभनाथ, चम्पापुर में वासुपूज्य जिनेन्द्र, ऊर्जयन्त गिरि ( गिरनार पर्वत) पर नेमिनाथ और पावापुर में महावीर स्वामी निर्वाण को प्राप्त हुए हैं।

णेमिसामी पज्जुण्णो संबुकुमारो तहेव अणिरुद्धो ।
बाहत्तरकोडीओ उज्जंते सत्तसया सिद्धा ॥ ५।।

अर्थ: नेमिनाथ स्वामी, प्रद्युम्न, शम्बुकुमार, अनिरुद्ध, और बहत्तर करोड़ सात सौ मुनि ऊर्जयन्त गिरि पर सिद्ध हुए हैं ॥ ५ ॥

आचार्य कुंदकुंद देव विरचित निर्वाण भक्ति
(समय: ई. 70-122)

समुद्रविजयश्चित्रा नेमिः शौरिपुरं शिवा ।
ऊर्जयन्तश्च ते मेषशृङ्गश्चास्तु सुखप्रदः ||५८||

अर्थ: शौरिपुरनगर, समुद्रविजय पिता, शिवा माता, चित्रा नक्षत्र, मेषशृंग वृक्ष, ऊर्जयन्त ( गिरनार ) पर्वत और नेमि जिनेन्द्र, ये तेरे लिए सुखदायक हों ||५८||

आचार्य रविषेण कृत पद्मपुराण (ई 677)

दोलान्दोलनकेलिभिः प्रतिवनव्याकोशपुष्पोत्कर-
स्वीकारेण सरोजरेणुरुचिरे नीरे मुहुः क्रीडया ।
आपानोत्सवगीतिभिश्च सरसैः संसारसारैः सुखै-
रित्थं रैवतके बसन्तसमयस्तैः प्रेरितः पर्वते ॥ ४६ ।।

श्री वागभट्ट जी कृत नेमि निर्वाण
काल : 1075-1125 ईसवी

जै जै स्वामी नेमिजी, नमौं स्वपद दातार हो ।
आप स्वयंभूनैं धरी, दिच्छा गढ़ गिरनार हो ॥ ५१ ॥

*द्यानत विलास, नेमीनाथ बहत्तरी, छंद 51, *
रचयिता : पंडित श्री द्यानतराय जी
रचना काल: विक्रम संवत 1780
,

चौवीस श्रीजिनराज चाहूं, और देव न मन वसै ।
जिन वीस खेत विदेह चाहूं, बंदतैं पातिग नसे ॥
गिरनार सिखर समेद चाहूं, चंपापुर पावापुरी।
कैलास श्रीजिनधाम चाहूं, भजत भाजै भ्रम-जुरी ॥२।।

द्यानत विलास, धरम चाह गीत, छंद 2,
रचयिता : पंडित श्री द्यानतराय जी
रचना काल - विक्रम संवत 1780,

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