अर्थ
मेरे मन में वह ही मत (धर्म) सच्चा है जो राग-द्वेष रहित है, जो अनादि से चला आ रहा है और सर्वज्ञ-भाषित है/सर्वज्ञ द्वारा बताया गया है।
हे प्राणी! प्रमाण पुरुष के वचन ही हितकारी व सत्य हैं अन्य कथन जो राग-द्वेष से दूषित हैं वे मात्र कल्पना हैं, ऐसा जानो।
राग-द्वेषरहित देव, हिंसारहित अहिंसा का प्रतिपादन करनेवाला धर्मशास्त्र, लोभरहित गुरु और आदि से अन्त तक विरोधरहित आगम शास्त्र - ये चार रत्न धर्म के आधार हैं।
यह जगत पाखंडों से भरा हुआ है, इसकी परख जिसने नहीं की उसने बहुत धोखा खाया है। भूधरदास कहते हैं कि हे प्राणी ! विवेक की कसौटी पर धर्मरूपी स्वर्ण को परखकर, कसकर, उसी यथार्थता को जानो। source- bhoodhar bhajan saurabh