सो मत सांचो है मन मेरे | So mat Sancho hai man mere

सो मत सांचो है मन मेरे |
जो अनादि सर्वज्ञ प्ररूपित, रागादिक बिन जे रे || टेक ||

पुरुष प्रमान-प्रमान वचन तिस, कलपित जान अने रे |
राग दोष दूषित तिन वायक, सांचे हैं हित तेरे || १ ||

देव अदोष धर्म हिंसा बिन, लोभ बिना गुरु वे रे |
आदि अन्त अविरोधी आगम, चार रतन जहं ये रे || २ ||

जगर भरयो पाखण्ड परख बिन, खाइ खता बहुतेरे |
‘भूधर’ करि निज सुबुधि कसौटी, धर्म कनक कसि ले रे || ३ ||

Artist : कविवर पं. भूधरदास जी

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अर्थ
मेरे मन में वह ही मत (धर्म) सच्चा है जो राग-द्वेष रहित है, जो अनादि से चला आ रहा है और सर्वज्ञ-भाषित है/सर्वज्ञ द्वारा बताया गया है।

हे प्राणी! प्रमाण पुरुष के वचन ही हितकारी व सत्य हैं अन्य कथन जो राग-द्वेष से दूषित हैं वे मात्र कल्पना हैं, ऐसा जानो।

राग-द्वेषरहित देव, हिंसारहित अहिंसा का प्रतिपादन करनेवाला धर्मशास्त्र, लोभरहित गुरु और आदि से अन्त तक विरोधरहित आगम शास्त्र - ये चार रत्न धर्म के आधार हैं।

यह जगत पाखंडों से भरा हुआ है, इसकी परख जिसने नहीं की उसने बहुत धोखा खाया है। भूधरदास कहते हैं कि हे प्राणी ! विवेक की कसौटी पर धर्मरूपी स्वर्ण को परखकर, कसकर, उसी यथार्थता को जानो।
source- bhoodhar bhajan saurabh

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