सीमंधर स्वामी, मैं चरनन का चेरा । Simandhar Swami Main Charnan ka Chera

                          राग काफी

सीमंधर स्वामी, मैं चरनन का चेरा ॥ टेक ॥
इस संसार असार में कोई, और न रक्षक मेरा ॥ सीमंधर॥
लख चौरासी जोनिमें मैं, फिरि फिरि कीनौं फेरा।
तुम महिमा जानी नहीं प्रभु, देख्या दुःख घनेरा ॥ १ ॥ सीमंधर ॥

भाग उदयतैं पाइया अब, कीजे नाथ निवेरा ।
बेगि दया कर दीजिए मुझे, अविचल थान- बसेरा ॥ २ ॥ सीमंधर ॥

नाम लिये अघ ना रहै ज्यों, ऊगें भान अंधेरा ।
‘भूधर’ चिन्ता क्या रही ऐसी, समरथ साहिब तेरा ॥ ३ ॥ सीमंधर ॥

अर्थ: हे सीमंधर स्वामी! मैं आपके चरणों का दास हूँ, सेवक हूँ, भक्त हूँ। इस नश्वर, सारहीन संसार में मेरी रक्षा करनेवाला/रक्षक और कोई भी नहीं है। चौरासी लाख योनियों में बार-बार जन्म लेकर फिरता रहा हूँ पर आपकी महिमा को / आपके गुणों को नहीं जाना, इस कारण तीव्र दुःखों को भोगना पड़ा है। अब मेरा भाग्योदय हुआ है कि आपके प्रति भक्ति जागृत हुई है। हे नाथ! अब मेरा निबटारा कर दीजिए। शीघ्र ही कृपाकर अविचल स्थान सिद्ध शिला पर मुझे अक्षय निवास प्रदान कीजिए। जैसे सूर्य के उदय होने पर अंधकार मिट जाता है, उसी प्रकार आपका नाम स्मरण करने से पाप नहीं ठहरते, वे नष्ट हो जाते हैं। भूधरदास जी कहते हैं कि जिसके स्वामी की ऐसी सामर्थ्य है उसको फिर कौनसी चिन्ता शेष रह सकती है अर्थात् नहीं रह सकती !

रचयिता: पंडित श्री भूधरदास जी
सोर्स: भूधर भजन सौरभ