सिद्धों की भूमि सम्मेदाचल | Siddhon ki Bhumi Sammedachal

सिद्धों की भूमि सम्मेदाचल, साधर्मी आओ झूम झूम के
मुनिवर अनंतो मुक्ति पाये, पायेंगें बंदू झूम-झूम के ।। झूम के ।।

बीस तीर्थकर यहीं मुक्ति पाये, तीर्थों का राजा यही भू कहायें ।
सिद्ध शिला भी सीधे सिर पर विराजे वंदू झूम झूम के ||

सांवलिया पारस प्रभु मुक्ति पाये उपसर्ग विजयी प्रभु जी हमारे ।
शत्रु न मित्र कोई दिखाये, वो समता वंदू झूम झूम के ।।

विषयों की तृष्णा से मन को हटाऊँ, शाश्वत सिद्धालय शुद्धातम को ध्याऊँ । ध्यान लगाऊँ मुक्ति पाऊँ सिद्धालय जाऊँ झूम-झूम के।।

ऊँचे शिखरों वाला ये तीरथ हमारा गंधर्व सीता बहती जल धारा।
सिद्धों के गीत गुनगुनाये सुनो तो जरा शांत भाव से ।।

सिद्ध ही सिद्ध प्रभु यहां याद आयें सिद्धों की श्रेणी में हम कब समायें । आतम परमातम बन जाये विनय से वंदू झूम झूम के।।

रचनाकार:- पं० राजेन्द्र कुमार जी, जबलपुर