सिद्धों का मैं सिद्ध हूँ, मैं ज्ञायक भगवान।
तीन लोक मैं मेरे जैसा कोई नहीं है महान।।
अनंत गुण व शक्तियां मेरे अंदर उछले।
एक समय में लोकालोक ज्ञान में झलके।
ऐसा मेरा ज्ञान है मैं हूं ज्ञायक चट्टान ।।तीन।।
रूचि और महिमा से मेरी होती है पहचान ।
स्वयं तुष्ट हूँ स्वयं पुष्ट हूँ दृष्टि का निधान ।
अनंत सिद्ध बुलाते मुझको,करते हैं आहृवान।।तीन।।
नहि जिज्ञासा नहि अभिलाषा, नहि संदेह स्थान ।
मैं डूब जाऊं अपने अंदर प्रगटे केवलज्ञान ।
मुक्तिरमा वरने को अब मैं, करता हूँ प्रस्थान।।तीन।।
ना कोई टेंशन नो ड्रिप्रेशन, सहज स्वरूप महान ।
ना रियेक्शन ना कोई एक्सन चेतन चिद्रूप जहान।
आत्मार्थी को मार्ग बताया श्री गुरुदेव कहान।।तीन।।