शुभ काललब्धि जागी भगवन | Shubh Kal Labdhi Jagi Bhagwan

शुभ काल लब्धि जागी भगवन, मैं पास आपके आया हूँ।
जागा है स्व पर विवेक अहो, निज महिमा लख हर्षाया हूँ ।।टेक।।

जिनवर गुणगान अहो निजगुण, चिंतन का एक बहाना है।
तुम साक्षी में प्रभुवर मुझको, निज शुद्धातम को ध्याना है ।।1।।

मैं नहीं अन्य कुछ तुम सम प्रभु, चिन्मूर्ति श्रद्धा आई है।
स्थिर स्वरूप आनंदमयी, कृत कृत्य दृष्टि उपजाई है ।।2।।

मैं कालातीत अखंड अनादि, अविनाशी ज्ञायक प्रभु हूँ।
प्रतिसमय समय में पूर्ण अहो, ज्ञाता दृष्टा ज्ञायक ही हूँ ।।3।।

आनंद प्रवाह अजस्त्र बहे, मैं सहज स्वयं आनंदमय हूँ।
आनंदमयी मेरा जीवन, मैं तो सदैव आनंदमय हूँ ।।4।।

मम ज्ञान में ज्ञान ही भासित हो, फिर लोकालोक भले झलके।
पर्यय निज में ही मग्न रहे, फिर कालावली अनंत बहे ।।5।।

रचयिता:- ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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