श्री सीमंधर स्तुति | Shri Simandhar Stuti

(लावनी)

हे ! सीमंधर भगवान शरण ली तेरी,
बस ज्ञाता दृष्टा रहे परिणति मेरी || टेक ||

निज को बिन जाने नाथ फिरा भव वन में |
सुख की आशा से झपटा उन विषयन में ||
ज्यों कफ में मक्खी बैठ पंख लिपटावे,
तब तड़फ-तड़फ दुःख में ही प्राण गमावे ||
त्यों इन विषयन में मिली, दुखद भवफेरी || १ ||

मिथ्यात्व रागवश दुखित रहा प्रतिपल ही,
अरु कर्मबंध भी रुक न सका पल भर भी |
सौभाग्य आज हे प्रभो तुम्हें लख पाया,
दुःख से मुक्ति का मार्ग आज मैं पाया ||
हो गई प्रतीति न रही मुक्ति में देरी || २ ||

सार्थक सीमंधर नाम आपका स्वामी |
सीमित निज में हो गये आप विश्रामी ||
करते दर्शन कर भव सीमित भवि प्राणी |
फिर आवागमन विमुक्त बने शिवगामी ||
चिरतृप्ति प्रदायक शांति छवि प्रभु तेरी || ३ ||

आत्माश्रय का फल आज प्रभो लख पाया |
निज में रमने का भाव मुझे उमगाया ||
निज वैभव सन्मुख तुच्छ सभी कुछ भासा |
दर्शन से पलट गया परिणति का पासा ||
चैतन्य छवि अंतर में आज उकेरी || ४ ||

हे ! ज्ञायक के ज्ञायक चैतन्य विहारी |
मैं भाव वंदना करूँ परम उपकारी ||
अपनी सीमा में रहूँ यही वर पाऊँ |
प्रभु भेद भक्ति तज निज अभेद को ध्याऊँ ||
अब अंतर में ही दिखे मुझे सुख ढेरी || ५ ||

रचयिता: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

Singer: Atmarthi @prakarsh Jain

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