श्री सिद्धचक्र माहात्म्य । Shri Siddh Chakr Mamatmya

श्री सिद्धचक्र माहात्म्य

श्री सिद्धचक्र गुणगान करो मन आन भाव से प्राणी,
कर सिद्धों की अगवानी ॥टेक ।।

सिद्धों का सुमरन करने से, उनके अनुशीलन चिन्तन से,
प्रकटै शुद्धात्मप्रकाश, महा सुखदानी ऽऽऽ
पाओगे शिव रजधानी ॥ श्री सिद्धचक्र ।। १ ।।

श्रीपाल तत्त्वश्रद्धानी थे, वे स्व-पर भेदविज्ञानी थे,
निज-देह-नेह को त्याग, भक्ति उर आनी ऽऽऽ
हो गई पाप की हानि ।। श्री सिद्धचक्र ॥२॥

मैना भी आतमज्ञानी थी, जिनशासन की श्रद्धानी थी,
अशुभभाव से बचने को, जिनवर की पूजन ठानी ऽऽऽ
कर जिनवर की अगवानी ।। श्री सिद्धचक्र ॥ ३ ॥

भव-भोग छोड़ योगीश भये, श्रीपाल ध्यान धरि मोक्ष गये,
दूजे भव मैना पावे शिव रजधानीऽऽऽ
केवल रह गयी कहानी ।। श्री सिद्धचक्र ।।४।।

प्रभु दर्शन-अर्चन-वन्दन से, मिटता है मोह-तिमिर मन से,
निज शुद्ध-स्वरूप समझने का अवसर मिलता भवि प्राणी ऽऽऽ
पाते निज निधि विसरानी ।। श्री सिद्धचक्र ।।५।।

भक्ति से उर हर्षाया है, उत्सव युत पाठ रचाया है,
जब हरष हिये न समाया, तो फिर नृत्य करन की ठानी ऽऽऽ
जिनवर भक्ति सुखदानी ।।श्री सिद्धचक्र. ।।६।।

सब सिद्धचक्र का जाप जपो, उन ही का मन में ध्यान धरो,
नहिं रहे पाप की मन में नाम निशानी ऽऽऽ
बन जाओ शिवपथ गामी ।। श्री सिद्धचक्र. ।।७।।

जो भक्ति करे मन-वच-तन से, वह छूट जाये भव-बंधन से,
भविजन! भज लो भगवान, भगति उर आनी ऽऽऽ
मिट जैहै दुखद कहानी ।। श्री सिद्धचक्र ।। ८ ।।

रचनाकार: पण्डित श्री रतनचंद जी भारिल्ल

Source: जिनेंद्र अर्चना

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