श्री मुनिसुव्रतनाथ स्तुति | Shri Munisuvratnath Stuti

हे मुनिसुव्रत प्रभु हो सुव्रत, अब यही भावना जागी है |
अविरति लगती है दुखदाई, मिथ्यामति मेरी भागी है || १ ||

परिग्रह बोझा सम लगता है, और भोग भुजंग समान लगे |
आनंद - कंद अभिराम परम, ज्ञायक में ही उपयोग पगे || २ ||

है धन्य - धन्य निर्ग्रन्थ दशा, आनंदमय प्रचुर स्वसंवेदन |
विषयों की आशा भी न रही, आरम्भ परिग्रह बिन जीवन || ३ ||

प्रभु सम निज में तृप्त रहूँ, रागादि भाव पर जय पाऊँ |
हे निज प्रभुता दर्शक प्रभुवर, चरणों में बलिहारी जाऊँ || ४ ||

(सोरठा)

मुनिसुव्रत जिनराज, मुनिव्रत धारूँ चाव सों |
अपने हित के काज, धन्य घड़ी कब आयेगी || ५ ||

  • बाल ब्र. रविंद्र जी ‘आत्मन’
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