श्री गौतम गणधर स्तुति | Shri Gautam Gandhar Stuti

गौतम गणधर केवलज्ञान, पाया आनंदमय अम्लान्।
हम सबको है हर्ष महान, करते भक्ति सहित गुणगान।टेक।।

बाह्य ज्ञान तो था बहुतेरा, अनुयायी शिष्यों का घेरा।
जग प्रसिद्धि बहु पाई थी, लेश न शान्ति मन आई थी।
आत्मज्ञान बिन इन्द्रियज्ञान, हमने भी समझा अज्ञान।।(1)

वीर प्रभु ने केवलपाया, समवशरण सुरपति रचवाया।
भव्यजनों की सभा भरी थी, दिव्यध्वनि पर नहीं खिरी थी।
इन्द्र इन्द्रभूति ढिंग आन, गूढ़ प्रश्न था किया महान।।(2)

महावीर ढिंग चलो कहा था, काललब्धि का स्वर्णिम क्षण था।
समवशरण में ज्यों ही आये, वीरनाथ के दर्शन पाये।
प्रगटाज्ञान विराग महान, गणधर पद पाया सुखखान।।(3)

धर्मतीर्थ जग में वर्ताया, भव्यों ने शिव मारग पाया।
वही तीर्थ हमको भी भाया, पाने को पुरूषार्थ जगाया।
पावें निश्चय आतमज्ञान, हो निर्ग्रन्थ धरें निज ध्यान।।(4)

वीरनाथ जब मुक्ति पधारे, जगत आपकी ओर निहारे।
आप आप में लीन हुए थे, घाति कर्म प्रक्षीण हुए थे।
हुए अनंत चतुष्टयवान, गुरुवर आप स्वयं भगवान।।(5)

हम भी अन्तर्दीप जलावें, मोह अंधेरा दूर भगावें।
सम्यक् भाव विशुद्धि बढ़ावें, धर्म महोत्सव सहज मनावें।
फैले घर-घर सम्यग्ज्ञान, मंगलमय जिनधर्म महान।।(6)

Artist - ब्र० श्री रवीन्द्र जी आत्मन्

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