श्री शांतिनाथ स्तुति | Shree Shantinath Stuti || ब्र. श्री रवीन्द्रजी 'आत्मन्'

प्रभु शान्त छवि तेरी, अन्तर में है समाई ।
प्रत्यक्ष देख मूरति, शान्ति हृदय में छाई ।। टेक ।।

शुभ ज्ञानज्योति जागी, आतमस्वरूप जाना।
प्रत्यक्ष आज देखा, चैतन्य का खजाना ।।
जो दृष्टि पर में भ्रमती, वह लौट निज में आई ।
प्रत्यक्ष देख मूरति, शान्ति हृदय में छाई ।। 1 ।।

अक्षय निधि को पाने, चरणों में प्रभु के आया ।
पर प्रभु ने मूक रहकर, मुझको भी प्रभु बताया ।।
अन्तर में प्रभुता मेरे, निश्चय प्रतीति आई ।
प्रत्यक्ष देख मूरति, शान्ति हृदय में छाई ।। 2 ।।

हे देव! आपको लख, खुद ही हुआ अकामी ।
है आश पर की झूठी, मैं पूर्ण निधि का स्वामी ।।
पर्याय हीनता से, मुझमें कमी न आई ।
प्रत्यक्ष देख मूरति, शान्ति हृदय में छाई ।। 3 ।।

मम भाव - अभाव शक्ति, पामरता मेट देगी।
अभाव-भाव शक्ति, प्रभुता विकास देगी ।।
निश्चिन्त होय दृष्टि, निज द्रव्य में रमाई ।
प्रत्यक्ष देख मूरति, शान्ति हृदय में छाई ।। 4 ।।

सर्वोत्कृष्ट निज प्रभु, तजकर कहीं न जाऊँ ।
जिन ! बहुत धक्के खाये, विश्राम निज में पाऊँ ।।
हो नमन कोटिशः प्रभु, शिवसुख डगर बताई ।
प्रत्यक्ष देख मूरति, शान्ति हृदय में छाई ।। 5 ।।

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: जिनवर स्तवन (page no. 154)

1 Like