श्री नन्दीश्वर द्वीप पूजन-२ । Shree Nandishwar Dweep Pujan-2

(वीर छंद)

नंदीश्वर के अकृत्रिम जिन मंदिर अरु जिनबिम्ब अहा।
ज्ञान मॉहि स्थापन करते उछले ज्ञानानन्द महा।।।
ज्ञानमयी ही हो आराधना, सहजपने निष्काम प्रभु।
तृप्त सदैव रहूँ निज में ही, और चाह नहीं शेष विभो।।

ॐ हीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशज्जिनालयस्थ-जिनप्रतिमासमूह! अत्र अवतर अवतर वौषट् आह्वानम्।।
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशजिनालयस्थ-जिनप्रतिमासमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।।
ॐ हीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशज्जिनालयस्थ-जिनप्रतिमासमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधि करणम्।

(छन्द-अडिल्ल)

स्वाभाविक निर्मल जल से अविकार हैं।
दुखमय जन्म जरा मृत नाशनहार हैं ।।
नंदीश्वर के बावन मंदिर अकृत्रिम ।
पूजूँ श्री जिनबिम्ब अनूपम जिन समं।।

ॐ हीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो जन्म-जरा-मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।

जड़ चन्दन नहीं अन्तर्ताप विनाशकं ।
सहज भाव चन्दन भवताप विनाशकं ।। नन्दीश्वर… ।।

ॐ हीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिण दिशि द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।

अमल भाव अक्षत ले मंगलकार हैं।
स्वाभाविक अक्षय पद के दाता हैं।। नन्दीश्वर… ।।

ॐ ही श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

आत्मीक गुण पुष्प जगत में सार हैं।
विषय चाह दव दाह शमन कर्तार हैं।।
नंदीश्वर के बावन मंदिर अकृत्रिम।
पूजूँ श्री जिनबिम्ब अनूपम जिन समं।।

ॐ हीं श्री नन्दीश्वर द्वीप पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिण दिशि द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

भोजन व्यंजन नहीं क्षुधा को नाशते।
तातें पूजों अकृत बोध नैवेद्य ले।। नंदीश्वर…।।

ॐ हीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

जड़ दीपक नहिं मोह विनाशनहार है।
मोह नशे जब जाने जाननहार है।। नन्दीश्वर…।।

ॐ हीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

प्रगटे अग्नी निर्मल आतम धर्म की।
जिससे होवे हानि सर्व ही कर्म की।। नंदीश्वर…।।

ॐ हीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

पाऊँ परम भावफल प्रभु मंगलमयी।
और कामना शेष नहीं मन में रही।। नंदीश्वर…।।

ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशजिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

शुद्ध भावमय अर्घ्य करूँ आनन्द सों।
पद अनर्घ्य पाऊँ छूटूँ भव फन्द सों।। नन्दीश्वर… ।।

ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशजिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

जयमाला
सोरठा - धर्म पर्व सुखकार, हे जिन! पाया भाग्य से।
ध्याऊँ प्रभुपाद सार, विषय कषायारम्भ तजि।।

(चौपई)

अष्टम द्वीप नंदीश्वर सार, पूजूं वन्दूँ भाव संभार।
इक इक अंजनगिरि अविकार, चार-चार दधिमुख सुखकार।।
आठ आठ रतिकर मनुहार, दिशि दिशि तेरह मंदिर सार।
बावन मंदिर यों पहचान, निरखत होवे हर्ष महान ।।
रत्नमयी मनहर जिनबिम्ब, सन्मुख भासे निज चिदबिम्ब ।
वर्णन है जिन आगम मांहि, भाव सहित पूजत मन माहिं।।
कार्तिक फाल्गुन आषाढ़ मंदिर, अन्त आठ दिन आनन्दधार।
जहँ सुरगण वन्दन को जाँहि, पुरुषार्थी सम्यक्त्व लहहिं।।
यद्यपि शक्ति गमन की नाहिं, तदपि ज्ञान में सहज लखाहिं।
भाव वन्दना कर सुखकार, निज अकृत्रिम भाव निहार।।
हुआ सहज संतुष्ट जिनेश, अब वांछा प्रभु रही न लेश।
निज प्रभुता निज में विलसाय, काल अनन्त सु मग्न रहाय।।
धर्म पर्व मंगलमय सार, जिस निमित्त हो तत्व विचार।
कर उद्यम पाऊँ पद सार, जय जय समयसार अविकार।।
पर्व अठाई मंगलरूप, ध्याऊँ निज अनुपम चिद्रूप।
नित्य पवित्र परम अभिराम, शाश्वत परमातम सुखधाम ।।
स्वयं सिद्ध अकृत्रिम जान, अजर अमर अव्यय पहिचान।
देखन योग्य स्वयं में देख, विलसे उर आनन्द विशेष ।।

ॐ हीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला पूर्णार्घ्यम निर्वपामीति स्वाहा।

दोहा

धन्य हुआ कृतकृत्य हुआ, पाया श्री जिनधर्म।
मर्म तत्त्व का प्राप्त कर, लहूँ सहज शिव शर्म।।

(पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि)

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