अथ शिक्षा छंद
दोहा
देह सनेह कहा करै, देह मरन को हेत ॥
उत्तम नरभवपायकें, मूढ अचेतन चेत ॥ १ ॥
उत्तम नरभवपायकें, मूढ अचेतन चेत ॥ १ ॥
मरहठा छंद
हे मूढ अचेतन, कछुइक चेतो, आखिर जगमें मरना है।
नरदेही पाई, पूर्व कमाई, तिससों भी फिर टरना है० ॥ टेक ॥ २ ॥
नरदेही पाई, पूर्व कमाई, तिससों भी फिर टरना है० ॥ टेक ॥ २ ॥
क्यों धर्म विसारो, पापचितारो, इन बातन क्या तरना है ॥
जो भूप कहाये, हुकुम चलाये, तौ भी क्या ले करना है, है मूढ॥ ३ ॥
जो भूप कहाये, हुकुम चलाये, तौ भी क्या ले करना है, है मूढ॥ ३ ॥
धन यौवन आये, रह अरझाये, सो संध्याका बरना है ॥
विषयारस रातो, रहे सुमातो, अतअगनिमें जरना है, हे मूढ ० ॥ ४ ॥
विषयारस रातो, रहे सुमातो, अतअगनिमें जरना है, हे मूढ ० ॥ ४ ॥
कैदिनको जीनो, विषैरस पीवो, बहुरि नरकमें परना है ॥
जैसी कछु करनी, तैसी भरनी, बुरे फैलसों डरना है ॥ हे मूढ० ॥५॥
जैसी कछु करनी, तैसी भरनी, बुरे फैलसों डरना है ॥ हे मूढ० ॥५॥
छिन छिन तन छीजै, आयु न धीजै, अंजुलि जल ज्यों झरना है।
जमकी असवारी, रहैतयारी, तिनसों निशदिन लरना है, हे मूढ०॥६॥
जमकी असवारी, रहैतयारी, तिनसों निशदिन लरना है, हे मूढ०॥६॥
कै भौ फिर आयो, अत न पायो, जन्म जरा दुख भरना है ॥
क्या देख भुलाने, भरम विरानें, यह स्वपनेका छरना है, है मूढ० ॥७॥
क्या देख भुलाने, भरम विरानें, यह स्वपनेका छरना है, है मूढ० ॥७॥
दुरगतिको परिवो, दुखको भरिवो, काल अनंतहु सरना है ॥
परसों हित मानै, मूढ न जाने, यह तन नाहिं उबरना है, हेमूढ० ॥८॥
परसों हित मानै, मूढ न जाने, यह तन नाहिं उबरना है, हेमूढ० ॥८॥
मिथ्यामत लीन्हें, आप न चीन्हें, कर्म कलंकन हरना है ॥
जिनदेव चितारो, आपु निहारो, जिनसो जीव उधरना है, हेमूढ०॥९॥
जिनदेव चितारो, आपु निहारो, जिनसो जीव उधरना है, हेमूढ०॥९॥
दोहा
जनम मरनतैं नाथ क्यों, जीव चतुर्गति माहिं ॥
पंचमि गति पाई नही, जो महिमा निजमाहिं ॥ १० ॥
पंचमि गति पाई नही, जो महिमा निजमाहिं ॥ १० ॥
निज स्वभावके प्रगटतें, प्रगट भये सब दर्व ॥
जनम मरन दुख त्यागकैं, जानन लागौ सर्व ॥ ११ ॥
जनम मरन दुख त्यागकैं, जानन लागौ सर्व ॥ ११ ॥
‘भैया’ महिमा ज्ञानकी, कह कहां लों कोय ॥
कै जानै जिन केवली, के समदृष्टी होय ॥ १२ ॥
कै जानै जिन केवली, के समदृष्टी होय ॥ १२ ॥
इतिशिक्षावली
रचयिता: पंडित श्री भैया भगवतीदास जी
सोर्स: ब्रह्म विलास
सोर्स: ब्रह्म विलास