शान्त छवि निरखी | Shant chhavi nirakhi

शान्त छवि निरखी, जिनवर की शांत छवि निरखी।
धन्य हुआ कृतकृत्य हुआ, प्रभु शांत छवि निरखी। टेक।।

निर्विकल्प आनंदमय, प्रभु स्वरूप पहिचान ।।
जगो हृदय में सहज ही, निज पर भेद विज्ञान ।।1।।

द्रव्य भाव नो कर्म से, न्यारा आतमराम ।
स्वानुभूति के गम्य नित, स्वयं सिद्ध अभिराम ।।2।।

धर्मसुधा बरसावती, जन्म अरु मरण मिटाय।
वीतराग मुद्रा प्रभु, सबही को सुखदाय।।3।।

मंगलमय मंगलकरण, प्रभु स्वरूप अविकार।
अंतरमाँहिं निहार कर, नमन करूँ सुखकार।4।।

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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