जब हम एक दूसरे को जय जिनेन्द्र बोलते है और उसके बाद ‘क्या हाल है?’ , ‘कैसे हो?’ , ‘क्या चल रहा है?’ आदि प्रश्न पूछते है।
इस बीच ‘जय जिनेन्द्र’ बोलने का जो मूल प्रयोजन है जो कि जिनेन्द्र भगवान को याद करना है, वो तो रह जाता है। क्या इसमे जिनेन्द्र भगवान के अविनय का दोष लगता है?
अविनय का दोष कहना उचित नही होगा। क्योंकि हमारे अभिवादन का तरीका ही जय जिनेन्द्र है। तो इस अपेक्षा से तो यह मात्र व्यवहार है। और दोष तो तब लगे जब हम उसकी बुद्धिपूर्वक अविनय करें। जैसे कि जय जिनेन्द्र शब्द का माजक उड़ाये। हर किसी से जय जिनेन्द्र ही बोलते रहें, जो कि न तो जैन हो और न ही जय जिनेन्द्र का अर्थ समझता हो। तो उसमें अविनय का पाप लगता है।
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Accha. Okay. But koi non-Jains ko hum Jai Jinendra bole toh isme dosh lagega??? Sure?
भाव जैसा होगा वैसा समझो।
जय जिनेन्द्र किसी अजैन को बोलने से दोष क्यों लगेगा?
यदि हमारा उद्देश्य गलत है,तो दोष लगेगा।
और यदि हम जानते हैं कि इसे हमारे धर्म की कोई value नही है, हमेशा माजक ही उड़ाता रहता है, तो बुद्धिपूर्वक उससे जय जिनेन्द्र न ही बोलना उचित है। और अगर गलती से निकल भी जाये तो वो कोई दोष नही है।
और मुझे नही लगता कि ये विषय अधिक चर्चा की अपेक्षा रखता है।
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