सत्य की महिमा।।Saty ki Mahima (Poem)

छन्द- वीर

जड़ कर्मों में अन्याय नहीं
क्योंकि उनमें कुछ ज्ञान नहीं।
बस इसीलिये इस प्रकृति को
अन्याय कभी बर्दाश्त नहीं।।1।।

अन्यायी नृप के सिंहासन-
भू में धसते देखे जाते।
अरु आँच सत्य पर आवे तो
कुछ परिवर्तन देखे जाते।।2।।

वो अनल कुंड तो सलिल कुंड
में बदल गया था हे प्राणी!
थीं सत्यवती सीता देवी कुछ
भी नहिं की आना कानी।।3।।

कुछ भी ना बोली मौन रही,
संयम ही उनका परिचय था।
निर्भयता उनका तर्पण था अरु
शील सत्य ही अनुनय था।।4।।

सत के आगे झुक जाते सब,
चाहे वे नायक ख्वाजा हों।
चाहे वे मर्यादा पुरुषोत्तम
राम सरीखे राजा हों।।5।।

बिसराया तव सच्चाई को,
कर जोड़ खड़े थे रामचंद्र।
पूजा जाएगा सत्य सदा,
जब तक जग में हैं सूर्य चन्द्र।।6।।

आरोप लगे थे बहुतेरे
साहस उन ने नहिं खोया था।
उद्घाटन हुआ सत्य का जब,
गलती पर राजा रोया था।।7।।

वे सेठ सुदर्शन शील सुभट
खुद को ही नपुंसक कह डाला।
कामिन से पाकर के निजात,
मुक्ति को डाली वर माला।।8।।

यह समय सत्य का साथी है,
सहचर है, सदा खड़ा रहता।
वह इम्तिहान लेता कि सत्य
पर कब तक कौन अड़ा रहता?।।9।।

धीरज धारी नर के अवगुण
सब शनैः शनैः नश जाते हैं।
निष्कंप निडर वे हो जाते
जो सत्य राह अपनाते हैं।।10।।

सोचो! जब हम छिपकर घर
पर चुपके रसगुल्ला खाते हैं।
पर उसमें वो रस नहिं आता
जो माँ के कर से पाते हैं।।11।।

रे! अल्प झूठ से भी देखो!
सारी खुशियाँ छिन जाती हैं।
मन भय भीत्रा से कम्पित हो
वाणी थर-थर हो जाती है।।12।।

बिन समझ सुना जैसा हो
वैसा कह देना वह सत्य नहीं।
अविवेक सहित कुछ भी कहना
जिनशासन को स्वीकृत्य नहीं।।13।।

अंधे को अंधा कह देना-
यह सच होकर भी सत्य नहीं।
निर्बल अपंग जन का प्रहसन
यह प्रकृति को स्वीकृत्य नहीं।।14।।

हितकारक मिष्टवचन प्रियवच-
वाणी के ये आभूषण हैं।
यदि सत्य नहीं जिह्वा पर तो
यह मानवता का दूषण है।।15।।

मन में कुछ वच में कुछ तन
में कुछ सत्य कहाँ से ये होता?
सत कहलाता तब, जब होता
मन वचन काय का समझौता।।16।।

अपराध हुआ तो सत्य बोलने
से चिन्ता मिट जाती है।
मन निश्चल निश्छल हो जाता
शान्ति असीम छा जाती है।।17।।

सब भार सहज ही ढह जाता
मृदुता सुकुसुम खिल जाते हैं।
अव्यक्त खुशी मंडराती है,
निश्चिंत गगन को पाते हैं।।18।।

हम शील भूमि पर सच्चाई
के अंकुर को यदि बोवेंगे।
कर सिंचन सेवा से, तो कुछ
पल में फल आनंद भोंगेंगे।।19।।

यह जीवन का है इम्तिहान
जो पग-पग पर होता रहता।
जो सत्य राह नहिं अपनाये-
वह जीवन भर रोता रहता।।20।।

         (दोहा)

महिमा सत्य स्वभाव की, जागृत ही उर आज।
सर्व जीव इस लोक के, पावें समकित राज।।21।।

:writing_hand:मंगलार्थी समकित जैन

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