जुआ दुःख रूप, बर्बादी का कूप ।
शर्त नहीं धरना, सहज काम करना ।।
चोरी का धन, मोरी में जावे ।
भयभीत रहते, महादण्ड पाते ।।
अण्डा मांस खाते, जीवों को सताते ।
रोगों को बढ़ाते, महादुःख पाते ।।
करने से शिकार, जीवन को बेकार ।
तड़फ-तड़फ वे मरते, नरकों में दुःख भरते ।।
पीने से शराब, बुद्धि हो खराब ।
जरदा और धूम्रपान, भांग अफीम दुःखखान ।।
शरीर भी गलता, महापाप लगता ।
नशा दुखदाई, छोड़ो-छोड़ो भाई ।।
पर स्री माता बहिन समान है ।
वासना की दृष्टि से होता हैरान है ।।
धोबी की शिला सम, वेश्या को टालो ।
दूर से ही छोड़ो, शील धर्म पालो ।।
दुखदाई आदतें निंंद्यनीय कुव्यसन ।
छोड़ो इन्हें तब ही, धर्म में लगेगा मन ।।
Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’