सपना (कल मैंने इक सपना देखा) | Sapna

कल मैंने इक सपना देखा, सपने में घर अपना देखा ॥ टेक ॥

उसमें ज्ञान ही ज्ञान भरा था, और साथ आनन्द घना था ।
उसे ज्ञान की आँखों देखा, कल मैंने इक सपना देखा ॥१॥

अपना घर तो अपना ही था, पूर्ण जगत से न्यारा ही था ।
मुझको प्राणों से प्यारा था, मैंने वहाँ रत्नाकर देखा ॥२॥

अपने घर में राग नहीं था, अपने घर में द्वेष नहीं था।
वह सब बाहर लौट रहा था, सब विभाव से न्यारा देखा ॥३॥

ऋषभदेव आदि ने बताया, कुन्दकुन्द स्वामी ने गाया ।
समयसार में जो दिखलाया, उस अद्भुत आतम को देखा ॥४॥

मेरा घर जिनवर को प्यारा, सकल पंचपरमेष्ठी दुलारा ।
इसको बन्धु! तुम भी देखो, मैंने इसे सत्य ही देखा ॥५॥

सपना नहीं सत्य ही था यह, सपना केवल स्टाइल है।
गुरुओं ने दिखलाया है ये, जिनवाणी ने बतलाया है ये ॥
सर्व ज्ञानियों ने यह देखा, सपने में घर अपना देखा ॥ ६ ॥

  • डॉ० वीरसागर जैन, दिल्ली