संसार लगने लगा अब असार | Sansar Lagne Laga Ab Asaar

हो… संसार लगने लगा अब असार, निज ज्ञायक की सुधि आई |
यतियों के मार्ग की महिमा अपार, द्वादश अनुप्रेक्षा मन भाई ||

उपशम रस की धारा बहती, अंतर परिणति ये ही कहती |
जन्म मरण का अंत होएगा, अनगारियों का पंथ होएगा |
लौकांतिक देवों ने की जय-जय कार, धन्य मुनिदशा मन भाई ॥(1)

दशों दिशाओं की चुनरिया, ओढ चले मुक्ति डगरिया |
मुक्ति नगर को चले दिगंबर, हर्षित धरा और अंबर |
स्वर्गों से पुष्पों की वर्षा अपार, दिगंबर मुद्रा मन भाई ॥(2)

सुरपति शिविका ले आए, पालकी में प्रभू को बैठाए ।
पंच मुष्टि केषलोंच करके, वस्त्राभूषण सब तजके |
तिलतुष मात्र न परिग्रह धार, यथाजात मुद्रा मन भाई ॥(3)

Singer: @Samay

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