संसार भावना और लोक भावना? | Sansar bhavna aur lok bhavna

संसार भावना और लोक भावना में क्या अंतर है?

संसार भावना में चार गति के दुःख और पांच परावर्तन का चिंतन होता है और लोक भावना में तीन लोक के स्वरूप का।

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तो संसार और लोक भावना को जानने से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है?
विस्तार से बताएं।

संसार हेय है तथा लोक भावना मात्र ज्ञेय है- ऐसा इन भावनाओं में क्रमशः विचार कर प्रयोजन सिद्ध होता । लोक में अनादिकाल से यह जीव परिवर्तन करना चाहता है किंतु लोक भावना को समझकर हमें कुछ करना नहीं है यह निर्णय होता है।

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