सम आराम विहारी। Sam Aaram Vihari

सम आराम विहारी

(राग परज)

सम आराम विहारी, साधुजन सम आराम विहारी । । टेक ||

एक कल्पतरु पुष्पन सेती, जजत भक्ति विस्तारी ।
एक कंठविच सर्प नाखिया, क्रोध दर्पजुत भारी ।।
राखत एक वृत्ति दोउनमें सबहीके उपगारी ।। १ ।।

सारंगी हरिबाल चुखावै, पुनि मराल मंजारी ।
व्याघ्रबाल करि सहित नन्दिनी, व्याल नकुल की नारी ।
तिनकै चरनकमल आश्रयतैं, अरिता सकल निवारी || २ ||

अक्षय अतुल प्रमोद विधायक, ताकौ धाम अपारी ।
कामधरा विव गढ़ी सो चिरतें, आतमनिधि अविकारी ।
खनत ताहि लेकर करमें जे तीक्षण बुद्धि कुदारी ।। ३ ।।

निज शुद्धोपयोगरस चाखत, पर ममता न लगारी ।
निज सरधान ज्ञान चरनात्मक, निश्चय शिवमगचारी ।
‘भागचन्द’ ऐसे श्रीपति प्रति, फिर फिर ढोक हमारी ||४ ||

रचयिता: कविवर श्री भागचंद जी जैन

Source: आध्यात्मिक भजन संग्रह (प्रकाशक: PTST, जयपुर )