सच्चे जिनवर सच्चे… सच्चे जिनवर सच्चे…2
सारे जग के जाननहारे…
ज्ञाता दृष्टा रहकर भी प्रभु, सबके तारण हारे।
तुम न कभी कुछ देते हो, बिन मांगे मिल जाता है
शरण तुम्हारी जो आता है, तुम समान हो जाता है
जग को देते जग की निधियां, ऐसे दान तुम्हारे ।।
अन्तर्मुख छवि प्यारी है, सारे जग से न्यारी है
राग द्वेष से रीति है, शांति दशा मनहारी है
वीतराग होकर भी प्रभुवर, सबके तारण हारे ।।
दोष अठारह रहित हुये, गुण अनंत से सहित हुये
चेतन में ही मग्न सदा, चेतन ही दर्शाय रहे
चेतन चेतन लगे भासने मे, ऐसे दर्श तम्हारे।।
वस्तु स्वरूप बताते हो, कर्ता बुद्धि नशाते हो।
पुण्य उदय से सुख नाही, स्वर्ग में दुख समझाते हो।
सभी जीव भगवान बने ये उपदेश तुम्हारे।।सच्चे।।