सच्चा जैन | Saccha Jain

सच्चा जैन

ज्ञानी जैन उन्हीं को कहते, आत्मतत्व निहारेें जो |
ज्यों का त्यों जाने तत्वों को, ज्ञायक में चित धारेें जो ||(1)

सच्चे देव शास्त्र गुरुवर की, परम प्रतीति लावेें जो |
वीतराग विज्ञान परिणति, सुख का मूल विचारेें जो ||(2)

नहीं मिथ्यात्व अन्याय अनीति, सप्त व्यसन के त्यागी जो |
पूर्ण प्रमाणिक सहज अहिंसक, निर्मल जीवन धारेें जो ||(3)

पापों में तो लिप्त न होवे, पुण्य भलो नहीं मानेें जो |
पर्याय को ही स्वभाव न जाने, नहीं ध्रुव दृष्टि विसारें जो ||(4)

भेद ज्ञान की निर्मल धारा, अंतर माँहिं बहावेें जो |
इष्ट अनिष्ट न कोई जग में, निज मन माँहिं विचारे जो ||(5)

स्वानुभूति बिन परिणति सूनी, राग जहर सम जानेें जो |
निज में ही स्थिरता का, सम्यक पुरुषार्थ बढ़ावेें जो ||(6)

कर्ता भोक्ता भाव न मेरे, ज्ञान स्वभाव ही जानेें जो |
स्वयं त्रिकाल शुद्ध आनंदमय, निष्क्रिय तत्व चितारें जो ||(7)

रहे अलिप्त जलज ज्यों जल में, नित्य निरंजन ध्यावेें जो |
आत्मन अल्पकाल में मंगलरूप, परमपद पावेें जो ||(8)

Artist - ब्र० श्री रवीन्द्र जी आत्मन्

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