प्रतिक्रमण पाठ । Pratikraman Path

अपने गुण रत्नों से प्रभुवर! मेरा कोष भरो!
प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन! मेरे दोष हरो।।

मैं क्रोधी हूँ मैं मानी हूँ, मायावी लोभी ।
मैं अज्ञानी पाप कहानी, जैसा हूँ जो भी ।।
अपनी गलती मैं स्वीकारूं, अब निर्दोष करो ।।1।। प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन…

रुई लपेटी आग प्रभुवर! कब लों कहाँ रखूं ?
परम पिता के चरणों आकर, क्यों न दोष कहूं !
हे पालक! अपने बालक को, शीघ्र अदोष करो ।।2।। प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन…

मोह महामद पीकर निशदिन, मैं मदहोश हुआ ।
द्रव्य क्षेत्र अरु काल भाव में, कितना दोष हुआ ।।
यह बेहोशी दूर भगाकर, मुझमें होश भरो ।।3।। प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन…

हे पृथ्वी! तू क्षमादान दे, हे जल! क्षमा करो ।
अग्नि ! वायु ! तू क्षमादान दे, हे तृण ! क्षमा करो ।।
तरुवर! गुरुवर! क्षमा कीजिये, अब न रोष धरो ।।4।। प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन…

हे दो इन्द्रिय! जीव केंचुआ, कृमि लट आदिक रे ।
हे तीन इन्द्रिय! चिंटा-चिंटी, खटमल वृश्चिक रे ।।
हे चतुइन्द्रिय! हे पंचेन्द्रिय, अब संतोष धरो ।।5।। प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन…

भूतकाल के पाप मिटाने, प्रतिक्रमण करता ।
निंदा घन आलोचन करके, भाव भ्रमण हरता ।।
आत्म शुद्धियाँ देकर स्वामी, करुणा घोष करो ।।6।। प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन…

त्रस थावर दोनों जीवों की, जो विराधना हुई ।
कभी न मुझसे मेरे भगवन ! शुद्ध साधना हुई ।।
अपना शिष्य सम्भालो गुरुवर! न अफ़सोस करो ।।7।। प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन…

नहीं अहिंसा व्रत पाला हो, सत्य न बोला हो ।
चोरी की हो मैं कुदृष्टि से, यह मन डोला हो ।।
बहुत परिग्रह जोड़ा मैंने, यह सब दोष हरो ।।8।। प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन…

अणुव्रत धारे, गुणव्रत धारे, शिक्षाव्रत धारे।
बारह व्रत से लगने वाले, दोष नहीं टारे ।।
लगे हुए उन अतिचारों को, अब निर्दोष करो ।।9।। प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन…

दर्शन व्रत सामायिक प्रोषध, सचित्त प्रतिमा के ।
रात्रिक भोजन ब्रह्मचर्य व्रत, अष्टम प्रतिमा के ।।
नौ दश ग्यारह प्रतिमाओं के, कल्मष कोष हरो ।।10।। प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन…

लिए हुए जो नियम अनेकों, पूरे नहीं किये ।
मेरे ही कर्तव्य जिनेश्वर! मुझसे नहीं हुए ।।
क्षमा मूर्ति हे क्षमादान दो, आतम विभव करो ।।11।।

प्रतिक्रमण करता हूँ भगवन! मेरे दोष हरो…

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