प्रभु का पर्याय में, जब मिलन होएगा।
तो चिदानंद का अनुभवन होएगा।।
जब से प्रभु को सुना है लगी है लगन,
शुद्ध ध्रुव ज्ञानमय और आनंदघन।।
आधि-व्याधि तथा सब उपाधि रहित,
ऐसे प्रभु में ही परिणाम लय होएगा।
प्रभु का पर्याय में, जब मिलन होएगा।
तो चिदानंद का अनुभवन होएगा।।
अब तो अर्पण करूँ सब मैं प्रभु के लिए
शाश्वत सुख लखूँ, निज का निज के लिए।।
तृप्त होकर बनूँ, आशा-तृष्णा रहित,
मेरा प्रतिक्षण ही निज हेतु अब होएगा।
प्रभु का पर्याय में, जब मिलन होएगा।
तो चिदानंद का अनुभवन होएगा।।
प्रभु से मिलने की युक्ति बड़ी है सरल,
जिसको करने में मैं खुद ही हूँ बहु प्रबल।।
है किसी की जरूरत मुझे अब नहीं,
मेरे अपने ही घर में मिलन होएगा।।
प्रभु का पर्याय में, जब मिलन होएगा।
तो चिदानंद का अनुभवन होएगा।।
वस्तु में वस्तु के गुण निहित हैं सदा,
गुण भी गुण रूप से हैं व्यवस्थित सदा।।
उनकी होतीं दशाएँ उपादान से,
मात्र स्वीकारने से भी सुख होएगा।।
प्रभु का पर्याय में, जब मिलन होएगा।
तो चिदानंद का अनुभवन होएगा।।
और सब व्यर्थ हैं, यत्न यह सत्य है,
ग्रहण करके स्व, परलक्ष्य सब त्यागना।।
स्व ही तेरा वतन, स्व ही स्व का यतन,
स्व में रहने से ही तुझको सुख होएगा।।
मंगल प्रेरणा : आ० ब्र० सुमतप्रकाश जी
रचयिता : आ० बा० ब्र० रवीन्द्र जी आत्मन्