प्रभु हम सब का एक, तू ही है तारण हारा रे।।
तुम को भूला, फिरा वही नर मारा-मारा रे ॥ टेक॥
बड़ा पुण्य अवसर यह आया, आज तुम्हारा दर्शन पाया।
फूला मन यह हुआ सफल मेरा जीवन सारा रे ॥१॥
भक्ति में जब चित्त लगाया, चेतन में तब चित ललचाया।
वीतरागी देव करो अब भव से पारा रे ॥२॥
अब तो मेरी ओर निहारो, भव समुद्र से नाव उबारो॥
‘पंकज’ का लो हाथ पकड़ मैं पाऊँ किनारा रे ॥३॥
जीवन में मैं नाथ को पाऊँ, वीतरागी भाव बढ़ाऊँ।
भक्ति भाव से प्रभु चरण में जाऊँ-जाऊँ रे ॥४॥