मोक्षमार्ग प्रकाशक में "गोमुत्रिका बंध क्या है" please see the photo attached

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यह काव्यलेखन की एक कला है। विरले कवि ही इस प्रकार के छंद को बना पाते हैं। टोडरमलजी साहब भी एक महान एवं सदे हुए कवि थे, ये छंद इस बात का प्रमाण है।

गो का अर्थ होता है गाय।
मूत्रिका का अर्थ है उसकी पेशाब।

जब गाय चलते हुए पेशाब करती है, तब अपने आप एक विशेष प्रकार की आकृति उसके मूत्र से बनती चली जाती है। जिसे हम ज़िक ज़ेक कह सकते हैं।
जो दिखने में कुछ इस प्रकार की होती है।

उपर्युक्त छंद पर यदि आप दृष्टिपात करेंगे तो ध्यान में आएगा कि एक शब्द “न” हर दूसरे शब्द के बाद आ रहा है।
जैसे मैं मो जै
कुछ इस तरह।
तो इसे हम गोमूत्रिका बन्ध में रख सकते हैं।
इसमें अनुप्रास अलंकार भी है, न शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण।

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@anubhav_jain ji bahot khub :clap::clap:
Dhanyavad

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Just to add little more color… these kinds of terminologies are also used at many different instances in आगम। For example, 4th type of विग्रह गति - जैसे गाय का चलते समय मूत्र का करना अनेक मोड़ों वाला होता है, उसी प्रकार तीन मोड़ेवाली गति को गोमूत्रिका गति कहते हैं (refer jainkosh).

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Some Additional Info:

इसीप्रकार की काव्यकला आचार्य समन्तभद्र ने अपने ग्रंथ स्तुति विद्या में दिखाई है। वहाँ पर सिर्फ गोमूत्रिका छंद नहीं, अपितु अन्य बहुत से तरीके के छंद-रचनाएँ देखने को मिलती है जिनको बनाना अति-कठिन है। इससे हमारे आचार्यगण की अद्वितीय काव्यकला का दर्शन होता है।

उदाहरण हेतु ―

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