परम दिगम्बर मुनिवर देखे, हृदय हर्षित होता है।
आनंद उल्लसित होता है।
हो ऽऽऽ सम्यग्दर्शन होता है।। टेक।।
वास जिनका वन उपवन में, गिरी शिखर के नदी तटे।
वास जिनका चित्त गुफा में, आतम आनंद में रमें ।।1।।
कंचन अरु कामिनी के त्यागी, महा तपस्वी ज्ञानी ध्यानी।
काया की ममता के त्यागी, तीन रतन गुण भंडारी ।।2।।
चाह नहीं है राज्य की, चाह नहीं है रमणी की।
चाह हृदय में एक यही है, शिव रमणी को वरने की ।।3।।
परम पावन मुनिवरों के, पावन चरणों में नमूं।
शांत मूर्ति सौम्य मुद्रा, आतम आनंद में रमूँ ।।4।।
भेदज्ञान की ज्योति जलाकर शुद्धातम में रमते हैं ।
क्षण क्षण में अंतर्मुख हो, सिद्धों से बातें करते हैं ।।5।।