पंखिडा ओऽऽऽ पंखिडा…२
पंखिड़ा रे उड़ के आओ कुण्डलपुर में।
तीर्थंकर जन्मे आज भरतक्षेत्र में ॥ टेक॥*
माता त्रिशला ने देखे थे सोलह सपने, उनका फल बताया सिद्धार्थराज ने;
तेजवान बुद्धिमान लाल होएगा, ज्ञानवान तीर्थङ्कर बाल होएगा ॥१॥
सिद्धार्थराज के द्वार बाजती बधाई है, प्रथम दर्शन को शची इन्द्राणी आई है;
इन्द्र-इन्द्राणी आये आज नगर में, खुशियाँ अपार छाईं नगर-नगर में ॥२॥
प्रभु आये यहाँ अच्युत विमान से, यह बालक शोभित सम्यक्त्व रिद्धि से;
मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान है, सम्यग्दर्शन ज्ञान रत्न भी महान है ॥३॥
प्रभु पूरी करेंगे यहाँ आत्म साधना, अब धारण करेंगे कभी पुनर्जन्म ना;
वीतरागभाव से जिनराज बनेंगे, चिदानन्द चैतन्यराज वरेंगे ॥४॥