पल पल जीवन बीता जाता है , बीता फल नहीं वापस आता है ।
लोभ मोह में तू भरमाया है , सपनों का संसार सजाया है ।।
ये सब छलावा है , ये सब भुलावा है ।
कर ले तू चिंतन अभी ।।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।
अनहोनी क्या कभी भी होती है , होनी भी तो कभी न टलती है ।
काललब्धी जिसकी आजाती है, बात समझ में तब ही आती है ।।
किसको समझाना है , किसको जगाना है ।
पहले तू जग जा खुद ही ।।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।
समझाने से समझ नहीं आता , जब समझे तब स्वयं समझ जाता ।
दिव्य ध्वनि भी किसे जगाती है , स्वयं जागरण हो तब भाती है ।।
तीर्थंकर समझाया , मारीची बौराया ।
माने क्या किसकी कोई ।।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।
साधर्मी से भी न बहस करना, और विधर्मी संग भी चुप रहना ।
बुद्धू बन कर चुप रह जाओगे , बहुत विवादों से बच जाओगे ।।
जीवन दो दिन का है , मौका निज हित का है ।
आवे न अवसर यूं ही ।।
क्योंकि आत्मा अनंत गुणों का धनी ।
फिर भी देखो पर्यायों में रुली ।।