पानी तो श्रेष्ठी नहीं पिया । Paani To Shreshthi Nahi piya। भावों का फल। Bhavo ka fal

पानी तो श्रेष्ठी नहीं पिया,
प्यासे पीने का भाव किया।
फिर मेढ़क हुए बावड़ी में,
पछताते धर्म करे मन में ।। 1 ।।

समवशरण’ प्रभु का आया,
श्रेणिक भी प्रजा सहित आया।
मेढ़क ने कमल एक लीना,
दर्शन के हेतु गमन कीना ।।2।।

हाथी के पगतल’ प्राण तजे,
सुर हो दर्शन को तभी चले ।
मेढ़क का चिह्न मुकुट में कर,
श्रेणिक से पहिले दर्शन कर ।। 3 ।।

भावों की महिमा प्रगटायी।
सारी जनता थी हरषायी ।। 4 ।।

उक्त रचना में प्रयुक्त हुए कुछ शब्दों के अर्थ

१. समवशरण= धर्म सभा २ पगतल =पैरों के नीचे
३. हरषायी =प्रसन्न हुई

पुस्तक का नाम:" प्रेरणा " ( पुस्तक में कुल पाठों की‌ संख्या =२४)
पाठ क्रमांक: १४
रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन् ’