नित पीज्यौ धीधारी | Nit Pijyo Dhi dhari

नित पीज्यौ धी धारी, जिनवाणी सुधासम जानिके ।।टेक।।

वीर मुखारविंदतैं प्रगटी, जन्मजरा भय टारी ।
गौतमादि गुरु-उर घट व्यापी, परम सुरुचि करतारी ।।१।।नित…।।

सलिल समान कलिलमल गंजन, बुधमन रंजनहारी ।
भंजन विभ्रम धूलि प्रभंजन, मिथ्या जलद निवारी ।।२।।नित…।।

कल्याणक तरु उपवनधरिनी, तरनी भवजलतारी ।
बंधविदारन पैनी छैनी, मुक्ति नसैनी सारी ।।३।।नित…।।

स्वपरस्वरूप प्रकाशन को यह, भानु कला अविकारी ।
मुनिमन-कुमुदिनि-मोदन-शशिभा, शम-सुख सुमन सुवारी ।।४।।नित…।।

जाके सेवत बेवत निजपद, नसत अविद्या सारी ।
तीन लोकपति पूजत जाको, जान त्रिजग-हितकारी ।।५।।नित…।।

कोटि जीभसौं महिमा जाकी, कहि न सके पविधारी ।
`दौल’ अल्पमति केम कहै यह, अधम-उधारनहारी ।।६।।नित…।।

Artist - पंडित श्री दौलतराम जी

6 Likes

हे बुद्धिमान , हे बुद्धि के धारक ! जिनवाणी को अमृत समान जान करके तुम उसका नित्य प्रति आस्वादन करो, उस अमृत का पान करो ।

वह जिनवाणी भगवान महावीर के श्रीमुख से निकली हुई है / खिरी हुई है । वह जन्म , बुढ़ापा व रोग को टालनेवाली, दूर करनेवाली है । वह जिनवाणी गौतम आदि मुनिजनों के हृदय में धारण की हुई - समाई हुई है ; सर्वोत्कृष्ट है , रुचिकर है और मोक्ष सुख को प्रदान करने वाली है । उस अमृत समान जिनवाणी का नित्य आस्वादन करो ।

यह जिनवाणी जल के समान पापरूपी मैल को धोनेवाली , बुधजनों के , विवेकिजनों के चित्त को हरनेवाली है , विभ्रमरूपी धूल का नाश करनेवाली है , मिथ्यात्व रूपी बादलों का निवारण करनेवाली है , उसको हटाने वाली है । उस अमृत समान जिनवाणी का नित्य आस्वाद करो ।

वह ज्ञान कल्याणक रूपी वृक्ष के उद्यान / बगीचे को धारण करनेवाली है और भव समुद्र से पार ले जाने के लिए , तारने के लिए नौका के समान है । समस्त बंधनों को विवेक की उत्कृष्ट छैनी से काट देनेवाली है और वह मोक्षमहल में जाने के लिए सीढी है । उसको संभालों । उस अमृत समान जिनवाणी का नित्य आस्वादन करो ।

वह जिनवाणी सूर्य के विकाररहित प्रकाश की भांति स्व और पर दोनों के स्वरूप को स्पष्टत: दिखाने वाली है । जिस प्रकार चंद्रमा की शीतल किरणों से कमलिनी खिलती है उसी प्रकार जिनवाणी मुनियों के मन को आनंदित करनेवाली है, समता रूपी आनंद पुष्पों की सुंदर वाटिका है । उस अमृत समान जिनवाणी का नित्य आस्वादन करो।

जिसकी स्तुति / सेवा करने से अपने स्वरूप की अनुभूति होती है और अविवेक अज्ञान का नाश होता है ; उसको तीन लोक का हित करनेवाली जानकर तीन लोक के स्वामी भी पूजा करते हैं ।उस अमृत समान जिनवाणी का नित्य आस्वादन करो।

दौलतराम कहते हैं कि यह जिनवाणी पतितजनों का उद्धार करनेवाली है । वज्रधारी इन्द्र की करोड़ों जिह्वाएं भी इस जिनवाणी की महिमा का वर्णन करने में असमर्थ हैं । उसका अल्पमती किस भांति वर्णन कर सकते हैं अर्थात् नहीं कर सकते । उस अमृत समान जिनवाणी का नित्य आस्वादन करो।

4 Likes

यहां भंजन शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है, इसका कोई विशेष औचित्य है?

कलाएं तो चन्द्रमा की होतीं हैं, सूर्य की कौनसी कला है?

इसका क्या अर्थ है?