निज शुद्धातम को ध्याओ | Nij Suddhatm ko dhyao

(तर्ज : रे मन भज ले श्री महावीर… )
निज शुद्धातम को ध्याओ, अक्षय प्रभुता प्रगटाओ ॥ टेक ॥

तू व्यर्थ ही बोझा ढोवे, जो होना हो सो होवे।
सम्यक्‌ विवेक प्रगटाओ, निर्भार भावना भाओ॥1॥

पर की सब चिन्ता छोड़ो, आराधन में चित जोड़ो।
कर्त्त्व विकल्प नशाओ, भवितव्य भावना भाओ॥ 2॥

दुःखकारी अध्यवसाना, नहिं अर्थ क्रिया कुछ आना।
क्यों अपन बन्ध बढ़ाओ, रोओ अरु व्यर्थ रुलाओ॥ 3॥

हो बाह्य व्यवस्था जो भी, उदयानुसार सो ही होवे।
अब व्यर्थ नहीं अकुलाओ, समता धरि कर्म नशाओ॥ 4॥

पर का कुछ दोष नहीं है, तेरा पुरुषार्थ यही है।
प्रभु भक्ति में मन लाओ, वैराग्य भावना भाओ॥ 5॥

नित वस्तु स्वरूप विचारो, निज ज्ञायक भाव निहारो।
निरपेक्ष रहो सुख पाओ, अपने में ही रम जाओ॥ 6॥

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: Swarup Smaran

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