निज कारज काहे न सारै रे । Nij Karaj Kahe Na Sare Re

निज कारज काहे न सारै रे

( राग दीपचन्दी)

निज कारज काहे न सारै रे, भूले प्रानी । टेक ॥।
परिग्रह भार थकी कहा नाहीं, आरत होत तिहारै ।। १ ।।
रोगी नर तेरी वपुको कहा, निस दिन नाहीं जारै रे ।। २ ।।
कूरकृतांत सिंह कहा जगमें, जीवन को न पछारै रे ।। ३ ।।
करनविषय विषभोजनवत कहा, अंत विसरता न धारै रे ।।४ ॥
‘भागचन्द’ भवअंधकूप में धर्म रतन काहे डारे रे ।। ५ ।।

रचयिता: कविवर श्री भागचंद जी जैन