५. सम्यक दर्शन के आठ अंग
नि:शंकित, नि:कांक्षित, निर्विचिकित्सा पालो ।
अमूढ़ दृष्टि हो कर, उपगूहन संभालो ।।1।।
करो स्थितिकरण धर्म में, वात्सल्य उर लाओ ।
विनय विशुद्धि और लगन से, धर्म प्रभाव बढ़ाओ ।।2।।
आठ अंग सम्यक दर्शन के, इन्हें सदा तुम धरना ।
सकल धर्म का मूल यही है, भवसागर से तरना ।।3।।