[नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी]
मुख ओंकार धुनि सुनि अर्थ गणधर विचारै ।
रचि आगम उपदेश भविक जीव संशय निवारै ॥
(दोहा)
सो सत्यारथ शारदा, तासु भक्ति उर आन।
छन्द भुजङ्गप्रयागतै अष्टक कहों बखान ॥
(भुजङ्गप्रयात)
जिनादेश ज्ञाता जिनेन्द्रा विख्याता, विशुद्धा प्रबुद्धा नमों लोकमाता।
दुराचार-दुनैहरा शंकरानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ॥१॥
सुधाधर्म संसाधनी धर्मशाला, सुधाताप निर्नाशनी मेघमाला।
महामोहविध्वंसनी मोक्षदानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ॥२॥
अखैवृक्षशाखा व्यतीताभिलाषा, कथा संस्कृता प्राकृता देशभाषा।
चिदानन्द-भूपाल की राजधानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ॥३॥
समाधानरूपा अनूपा अक्षुद्रा, अनेकान्तधा स्याद्वादाङ्क मुद्रा ।
त्रिधा सप्तधा द्वादशांगी बखानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ॥४॥
अकोपा अमाना अदंभा अलोभा, श्रुतज्ञानीरूपी मतिज्ञानशोभा।
महापावनी भावना भव्यमानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ॥५।।
अतीता अजीता सदा निर्विकारा विषैवाटिका खंडिनी खड्ग-धारा।
पुरापापविक्षेप कर्तृ कृपाणी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ॥६।।
अगाधा अबाधा निरंध्रा निराशा, अनन्ता अनादीश्वरी कर्मनाशा।
निशंका निरंका चिदंका भवानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ॥७॥
अशोका मुदेका विवेका विधानी, जगजन्तुमित्रा विचित्रावसानी।
समस्तावलोका निरस्ता निदानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ॥८॥
(उल्लाला)
जे आगम रुचिधरै, जे प्रतीति मन मांहि आनहि।
अवधारहिंये पुरुष, समर्थ पद अर्थि आनहिं ।
(दोहा)
जे हित हेतु ‘बनारसी’, देहिं धर्म उपदेश ।
ते सब पावहिं परम सुख, तज संसार कलेश ।।
Artist - पं. श्री बनारसीदास जी