मेरो मनुवा अति हरषाय, तोरे दरसन सौं |
शांत छबि लखि शांत भाव ह्वै, आकुलता मिट जाय || टेक ||
जबलौं चरन निकट नहिं आया, तबलौं आकुलता थाय |
अब आवत ही निज निधि पाया, नित नव मंगल पाय || १ ||
‘बुधजन’ अरज करै कर जोरे सुनिये श्री जिनराय |
जबलौं मोख होय नहिं तबलौं भक्ति करूं गुन गाय || २ ||
Artist : कविवर पं. बुधजन जी