मेरे चारौं शरन सहाई -२
जैसे जलधि परत वायस कौं, बोहिथ एक उपाई।।टेक।।
प्रथम शरन अरहंत चरन की, सुरनर पूजत पाई॥
दुतिय शरन श्री सिद्धनकेरी, लोक तिलकपुर राई।।१।।
तीजे शरन सर्व साधुनिकी, नगन दिगम्बर काई॥
चौथे धरम अहिंसा रूपी, सुरग-मुक्ति सुखदाई।।२।।
दुरगति परत सुजन-परिजनपै, जीव न राख्यो जाई ||
‘भूधर’ सत्य भरोसो इनको, ये ही लेहिं बचाई।।३।।
Artist - श्री भूधर दास जी