मेरा ज्ञान उपवन सहज खिल गया है।
मुझे अब तो समकित सदन मिल गया है।
सदा मोह मिथ्यात्व ने दुख दिया था
स्वयं के स्वबल से स्वधन मिल गया है-मेरा ज्ञान… ।टेक॥
मेरे श्वास उच्छ्वास पर में रमे थे
निजातम से सुरभित सुमन मिल गया है ॥१॥
नयातीत होने का उद्यम करूंगा।
अनेकान्त नय का भवन मिल गया है ॥२ ।।
समर्पित गुरूदेव के प्रति निरन्तर
उन्हीं की कृपा से ये धन मिल गया है ॥३॥