Meaning of the last line of the sutra provided below

बोधि: समाधि: परिणाम शुद्धि:, स्वात्मोपलब्धि: शिवसौख्य सिद्धि:।
चिन्तामणिं चिंतित वस्तुदाने, त्वां वंद्यमानस्य ममास्तु देवी!

Kindly help me understand the meaning of the last part of this sutra i.e. “त्वां वंद्यमानस्य ममास्तु देवी!”

What does it mean?

हे देवी! तुम्हारा चिन्तवन करने से वस्तु-स्वभाव का दान (ज्ञान) मिलता है, आपका वन्दन करने से मुझे बोधि, समाधि, परिणाम की शुद्धि, निजात्म की प्राप्ति और मोक्षसुख कि सिद्धि हो।

हे देवी! आपको वन्दन-करने-वाला मुझे उपर्युक्त की प्राप्ति हो।

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Thank you!

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