मैं सत् चित् आनंद | Me sat chit aanand

निरन्तर चिन्तनीय भावना

मैं सत् चित् आनन्द रूप हूँ ज्ञाता दृष्टा सिद्ध समान ।
द्रव्य भाव नो कर्म बिना हूँ अमूर्तीक निर्मल गुण खान ।।

यद्यपि द्रव्य शक्ति से हूँ इम पै अनादि विधि बंध विधान ।
लख चौरासी रङ्ग भूमि में, नाचत पर में आपा मान ।।

सद्गुरु देव धर्म बिन जग में हितू न कोई किसी का जान ।
पुत्र कलत्र मित्र गृह सम्पत्ति, ये मम मोह कल्पना मान ।।

इम विचार निज रूप चितारै पावै सम्यक् बोधि महान ।
पुनिकर नष्ट अष्ट विधि पावै, शीघ्र ‘दीप’ अविचल निर्वान ।।

रचयिता:- पं. दीपचंद जी कासलीवाल

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