मङ्गलायतन की वसुन्धरा पर, बच्चा-बच्चा गाये,
नीले अम्बर पे धर्म ध्वजा लहराये ॥
इस तीर्थंकर की वसुन्धरा पर अनुपम अमृत घोला।
मुक्ति का मैं ध्यान करके मुनि भक्ति में बोला
गुरुदेव की सुरभित वाणी-२, दशों दशा महकाये ॥१॥
नीले अम्बर पे धर्म ध्वजा लहराये।
शुद्धातम का ध्यान हुआ निज परिणति में लौलाई
भूल गये आडम्बर सारे, सिद्ध दशा मन भायी।
ओ, जिनमन्दिर को लखकर मनवा झूम-झूम कर गाये ॥२॥
नीले अम्बर पे धर्म ध्वजा लहराये।