है ज्ञान सूर्य का उदय जहाँ (मंगल-प्रभात) | Mangal Prabhat

मंगल-प्रभात

है ज्ञान-सूर्य का उदय जहां, मंगल प्रभात कहलाता है।
मिथ्यात्व महातम हो विनष्ट, सम्यक्त्व कमल विकसाता है।।1

वस्तु का रूप यथार्थ दिखे, नहिं इष्ट अनिष्ट दिखाता है।
है भिन्न चतुष्टयवान द्रव्य, पर लक्ष्य नहीं हो पाता है।।2

अतएव विकारीभाव रहित, निज सुख अनुभूति होती है।
फिर स्वयं तृप्त उस ज्ञानी के, इच्छा पिशाचनी भगती है।।3

तत्क्षण संवरमय भावों से, नवबंध पद्धति रुकती है।
झड़ते हैं स्वयं कर्म बंधन, शिवरमणी उसको वरती है।।4

रचयिता:- पंडित श्री ब्र. रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

3 Likes