आओ हम सब प्रभु गुण गायें ।
प्रभुवर को आदर्श बनायें ।। टेक ॥।
मोह भगायें - ज्ञान जगायें।
मुक्तिमार्ग में कदम बढ़ायें ।। 1 ।।
सत्य - अहिंसा को अपनायें ।
अपना जीवन सफल बनायें ।। 2 ।।
पावन धर्म ध्वजा फहरायें ।
आपस में वात्सल्य बढ़ायें । । 3 ।।
अनेकान्तमय’ वस्तु स्वरूप ।
समझें और सबको समझायें ॥ 4 ॥
श्री गुरुओं की परम्परा को ।
आगे हम सब सहज बढ़ायें ।। 5 ।।
दूर भगावें बुरी रीतियाँ ।
जग में सुखद रीति फैलायें ।।6।।
नहिं अटकें हम बाह्य ज्ञान में।
भेद - विज्ञान कला प्रगटायें ।। 7 ।।
भाएँ नित ही तत्त्व भावना ।
अन्तर में वैराग्य बढ़ायें ।। 8 ।।
उदासीन हो पर भावों से ।
निज स्वभाव में ही रम जायें ॥ 9 ॥
उक्त रचना में प्रयुक्त हुए कुछ शब्दों के अर्थ
अनेकांतमय= अनेक धर्म युक्त
पुस्तक का नाम:" प्रेरणा " ( पुस्तक में कुल पाठों की संख्या =२४)
पाठ क्रमांक: १०
रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन् ’