ममता की पतवार ना तोडी आखिर को दम तोड़ दिया,
इक अनजाने राही ने शिवपुर का मारग छोड़ दिया ||
नर्क में जिसने भावना भायी मानुष तन को पाने की
भेष दिगम्बर धारण करके मुक्ति पद को पाने की
लेकिन देखो आज ये हालत ममता के दीवाने की
चेतन होकर जड द्रव्यों से कैसे नाता जोड़ लिया ॥(1)
ममता के बन्धन में बंध कर क्या युग युग तक सोना है।
मोह अरी का सचमुच इस पर हो गया जादू टोना है।
चेतन क्या नरतन को पाकर अब भी यों ही खोना है।
मन का रथ क्यों शिवमारग से कुमारग पर मोड़ दिया ॥(2)
मत खोना दुनिया में आकर ये बस्ती अनजानी है।
जायेगा हर जाने वाला जग की रीति पुरानी है।
जीवन बन जाता यहां पंकज सबकी एक कहानी है।
चेतन निज स्वरुप देखा तो दुख का दामन तोड़ दिया ॥(3)
भावार्थ :-
अज्ञानी जीव ने मोह में अपनापन तो छोडा नही और इस मनुष्य पयार्य को व्यर्थ में गवां दिया। इस तरह मोक्षमार्ग से अंजान जीव ने मोक्ष अर्थात् सुख के मार्ग का त्याग कर दिया ॥टेक॥
जब यह जीव नरक गति में था तो वहां के दु:खों से डरकर इसने मनुष्य पयार्य की प्राप्ति की तथा दिगम्बर दीक्षा धारण करके मोक्ष पद को प्राप्त करने की भावना भाई थी। लेकिन मनुष्य पर्याय मिलने के बाद यह आपनी उस भावना को भुल गया और मोह में दीवाने इस जीव की आज ऐसी अवस्था हो गई कि इसने स्वयं चेतन द्रव्य होकर जड पुदगल द्रव्यों को अपना साथी मान लिया ॥1॥
हे चेतन! मोह के बंधन में बंध कर क्या अनंत काल इस तरह ही व्यतीत करना हैं…? लगता है सचमुच इस चेतन आत्मा पर मोह शत्रु ने कोई जादू टोना सा कर दिया है जिससे इसे आत्मा का हित पसंद नही आता। हे चेतन! क्या इस दुर्लभ मनुष्य पर्याय को प्राप्त करके भी यूं ही व्यर्थ में बरबाद करना है। पता नही क्यों यह अज्ञानी जीव अपने मन के रथ को मोक्ष के मार्ग से विपरीत संसार मार्ग की ओर ले जा रहा है॥2॥
हे चेतन! तुम इस क्षणभंगुर जगत के स्वरुप से अनजान हो। इसकी संगती में तुम अपने स्वरुप को मत भुल जाना। इस संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति का मरण निश्चित ही है, यह तो इस संसार की अनादि काल की परम्परा है। कवि कहते हैं कि यहां सभी अज्ञानी जीवों का एक जैसा ही व्यवहार देखा जाता हैं पर जो मनुष्य पर्याय का सदुपयोग करता हैं और अपने स्वरुप को पहचानता है तो उसके समस्त दुखों का संयोग छुट जाता है तथा उसे सुख अर्थात् मुक्ति की प्रप्ति होती है ॥3॥
Meaning Source: Vitragvani